उड़ी पतंग रे !उड़ी पतंग
उड़ी पतंग रे !उड़ी पतंग
उड़ी पतंग रे! उड़ी पतंग,
आसमां से जुड़ी पतंग,
कभी किधर-कभी किधर
हवा जिधर वहीं मुड़ी पतंग,
ड़ोर के दम पर ये उड़ पाए
बार-बार हिचकौले खाए,
करते-करते हवा संग बातें
काटे कभी तो ये कट जाए,
अलटी खाती पलटी खाती
नीचे कभी तो ऊपर जाती
जीवन के उतार-चढ़ाव का
हमें यह है सबक सिखाती,
न खेले कोई व्यक्ति विशेष
न इसका एक कोई परिवेश
खेले इसको हर कोई चाव से
देश हो या फिर हो विदेश,
अनेकों है रूप व आकार
रंगो के हैं इसमें भण्डार,
लम्बी-लम्बी पूँछ इसकी
सुन्दरता का हैैं आधार,
जात-पात को ये न माने,
उम्र की सीमा न ये जाने,
हर किसी को देती खुशियाँ
मौज-मस्ती को ही पहचाने,
उड़ी पतंग रे!उड़ी पतंग,
आसमां से जुड़ी पतंग,
इसको उड़ते हुए देखकर
छा जाती दिल में उमंग।