उड़ान
उड़ान
ज़मीन पर बैठकर क्यों आसमान देखता है
परों को खोल अपने, ये ज़माना "केवल" उड़ान देखता है।
इस जहां में सोते हुए सपने तो हर कोई देखता है,
देख सपना ऐसा, लक्ष्य बने सफलता का गहना
हार भी अपनी हार देखकर कांप उठे, बना अपनी "जीत" को भव्य इतना।
हार और जीत में फर्क दिखता है
एक तरफ मातम दूसरी तरफ जश्न दिखता है।
सीख दीपक से तम को दूर भगाना
सीख विफलता से राह की पगडंडी बनाना
क्यूं ज़मीन पर बैठकर आसमान देखता है?
परों को खोल अपने, ये ज़माना "केवल" उड़ान देखता है।
हर दिन रात के अंधेरे से लड़कर "सूरज" को उगते देखा है
महाभारत में चक्रव्यूह को तोड़ते "अभिमन्यु" को देखा है
अनेक योद्धाओं को असफलता पर विजय पाते देखा है
फिर क्यों ज़मीन पर बैठकर आसमान देखता है?
परों को खोल अपने, ये ज़माना "केवल" उड़ान देखता है।
