तू ऐ.. ज़िन्दगी
तू ऐ.. ज़िन्दगी
ऐ ज़िन्दगी.. तू एक,
पर तेरे रंग अनेक।
कितने रंग बदलती है
ज़िन्दगी..!
कभी फूलों-सी सजी
अधरों पर,
तो कभी अश्कों को
समेटे पलकों पर,
अजब रंग है तेरे,
कितने रूप बदलती है !
जैसे हर रोज..
इक नया अध्याय..
लिखती है ज़िन्दगी।
ज़िन्दगी,
पेड़ पर लगी पत्ती !
पीला पड़ना.. सूखना,
फिर झड़ जाना..
और झड़ कर मिट्टी बनना..
क्या मात्र...
यही नियति है तेरी..
ऐ ज़िन्दगी।
फूल पर बैठी तितली-सी,
छूते ही उड़ जायेगी..
रंग लगे रह जायेंगे,
उंगलियों पर शेष !
जादू-सा जगाती है !
कितनी मनमोहक है
तू ऐ.. ज़िन्दगी।
ज़िन्दगी !
बड़ी तमन्ना थी
तुम्हारे क़रीब आने की
छूने की..सहलाने की,पर
जैसे ही छुआ तुम्हें..
तुम छुई-मुई हो गयी !
कितनी मृदु-सुकुमार सी है,
तू ऐ..जिंदगी।
इक ऐसा लम्हा है ज़िन्दगी
कब ठहर जाये क्या पता..
ठहर के ऐसा रूके कि -
फिर चलने का नाम न ले !
बड़ी ही बेमुरब्बत है
तू ऐ.. ज़िन्दगी।
महज़ इक खिलौना है
किसी के हाथ का..
कब तोड़ दे वह -
क्या भरोसा !
शाश्वत नहीं,क्षणभंगुर है !
तू ऐ..ज़िन्दगी।
ज़िन्दगी..
कुम्हार के चाक पर लगा
मिट्टी का लौंदा !
ज़रा-सा हिल जाने पर,
भरभरा कर गिर पड़ती है..!
रेत के घरौंदे-सी..है
तू ऐ.. ज़िन्दगी।
कभी किसी से
कोई गिला न रखना,
रिश्ते बडे नाज़ुक होते हैं,
सहेज कर रखना..
कब थम जाये,
छोटा-सा सफ़र है..
ज़िन्दगी !
सच कहूँ तो..
बड़ी ही बेवफ़ा है,
तू ऐ..ज़िन्दगी।
कभी अपनी-सी,
तो कभी बेगानी-सी..
कभी सपना तो,
कभी हक़ीक़त-सी !
कठपुतली-सा
दिनभर नचाती..
ऐ ज़िन्दगी !
तू ही बता..
क्यूँ रही मेरे लिए
हमेशा ही..
इक अबूझ पहेली-सी।
चाहा बहुत,
दिल खोल के..
हँसे-खिलखिलाएँ !
पर न जाने क्यूँ..
दबी-छुपी गुमनाम-सी,
शर्मायी - सकुचायी-सी..
रही सदा ही,
अधखिली-अनजानी-सी..
तू क्यूँ ऐ..ज़िन्दगी।