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Shayra dr. Zeenat ahsaan

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Shayra dr. Zeenat ahsaan

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तुम्हें देनी होगी

तुम्हें देनी होगी

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मै आ गई हूं इक्कीसवीं सदी में,

तुम्हारा दखल

मेरे रहन सहन,पहनावे, शिक्षा,

रीति रिवाज और कीर्ति को लेकर

उस दौर में भी था और आज भी है।

तुम तब भी मांगते थे 

अग्निपरक्षा राम,

तुम तो मर्यादा पुरुषोत्तम थे,

एक ही पत्नी का व्रत लिया था

फिर क्यों त्यागा मुझे,

निभाना चाहते थे अपना राजधर्म

या बचा रहे थे अपनी गद्दी,

तुम वो सातों वचन भूल बैठे थे

जो मुझे अग्नि के समक्ष दिए थे,

पर मैने सदैव अपना स्त्री धर्म निभाया है।

और चल पड़ी थी सब कुछ त्याग ,

तुम्हारे साथ वन की ओर

पर वहां भी तुम अपना पति धर्म न निभा सके

फिर लेे गया रावण मुझे हर के,

मैने सदैव तुम्हें चाहा,सम्मान दिया,हृदय में बसाया है।

तुमने युद्ध किया, मारा रावण, हासिल कर लिया मुझे

मै फिर एक बार चल पड़ी पाने तुम्हारा साथ जीवन की लालसा लिए

पर फिर तुमने मुझे छोड़ दिया करके विश्वास धोबी का

मै तुम्हारी अर्धांगिनी थी,हर सुख दुख की साथी,

पर तुमने मेरा विश्वास न किया

फिर मुझे देनी पड़ी अग्नि परीक्षा ,

मैं त्रेता में सीता थी और द्वापर में दौरोपती और आज हूं दामनी।

कब तक होता रहेगा मेरा दमन,

कब तक मै कुचली जाऊंगी

कब तक मै कसौटी पर कसी जाऊंगी,

कब तक मुझे देनी पड़ेगी अग्निपरीक्षाएं,

मेरी फरियाद कोई क्यों नहीं सुनता

मुझे कोई क्यों नहीं समझता

पर नहीं राम अब बस बहुत हुआ

अबकी बार मै नहीं तुम्हें देनी होगी अग्निपरीक्षा।



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