तुम मेरी हो
तुम मेरी हो
उस दिन बाज़ार से
लौटते वक़्त मै रुक गई थी,
लाल फटी फ्राक में रोती तुम मुझे बहुत प्यारी लग रही थीं,
तुम रोते रोते लगातार मेरी ओर देख रही थी तुम्हारे पूरे शरीर पर धूल लग गई थी
जिसे मैने झाड़ दिया था,
तुम चुप हो गई थी,
फिर तुम्हें लेे गई थी मै पास के पुलिस थाने, पर वहां यह कह दिया गया कि पास ही
बंजारों का डेरा है वहीं से आईं होगी ये,
मै वहां भी लेे गई थी तुम्हें
पर वहां भी कोई न था।
बाद में बहुत खोजने पर पता चला कि तुम एक अनाथ हो,
फिर मेरा मन इंद्रधनुषी हो गया,
मैने तुम्हें किसी मर्तबान की तरह झाड़ पोछ कर,
अपने पास रख लिया,
आज इतने वर्षों बाद भी तुम्हें मेरी ही फिक्र है,
जबकि अब तुम्हारा स्वयं का घर संसार है,
पर शायद मेरा ये निर्णय एकदम सही था,
तुम अनाथ नहीं हो,
तुम मेरी हो और सदैव मेरी रहोगी बेटी।