तुम ही तो थे
तुम ही तो थे
वो तुम ही थे वो तुम ही तो थे,
जो मुझको हर पल सताते थे,
जो बार बार फ़ोन की घंटी बजाते थे,
जो बार बार रूप बदलकर नाम
बदलकर ऑनलाइन आते थे,
प्यार का हमारे इम्तिहान लेते थे,
जाने क्यों तुम ऐसा करते थे,
तुम्हारी चोरी हम हर बार पकड़ लेते,
पर तुम न कभी सुधरे ना ही सुधरोगे,
आज भी ये सिलसिला जारी है,
आखिर कब तुम सुधरोगे,
सामने आकर कर लो परेशान तुम हमको,
रूठे थे हम तुमसे कभी तो हिम्मत
करके मना लेते तुम,
पर तुम्हारी ये शरारतें कभी हंसाती
तो कभी दिल तोड़ती है ।
