टूटा हुआ बंदा हूँ
टूटा हुआ बंदा हूँ
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मैं टूटे हुए लोगों का नुमाइंदा हूँ
लाख थपेड़े सहते हुए भी मैं ज़िंदा हूँ
कैसे कहूं, कैसा बंदा हूँ
हाँ ,बस बिना उम्मीद के ज़िंदा हूँ।
जिंदगी की जंग मैं जीतूं या हारूँ
पर मैदान कभी मैं छोडूगां नहीं
मंजिल चाहे मिले ना मिले
पर चलना कभी मैं छोडूगां नहीं।
आकाश में उड़ता परिंदा हूँ
पिंजरे में कैद, फिर भी ज़िंदा हूँ
मेरे ख्याल में तेरा अक्स है
जिसे चाहता तू वो शख्स है,
मिलना तुझसे खुदा बख्श है
इसी उम्मीद पर कायम, मैं ज़िंदा हूँ
मैं टूटे हुए लोगों का नुमाइंदा हूँ।
