ठहराव
ठहराव
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कुछ ठहर सा गया है अंदर-अंदर
कुछ कड़वी कुछ मीठी यादें
बहुत कोशिश किया पर नहीं निकलती
सब कुछ बेमानी सा
एक बेनाम कहानी सा
मैं हूँ ! लेकिन क्यों पता नही
मेरा होने का कोई सबब ?पता नहीं
दोस्त होते हैं ?शायद नहीं होते
मैं बिलकुल ठीक हूँ या नहीं हूँ ?
कोई मुझे प्यार करता है ?पता नहीं
जीना ज़रुरी है? शायद नहीं
किसी को मेरी जरुरत है? शायद नहीं
ऐसे ख्याल क्यों आते हैं ? पता नहीं !
