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रिपुदमन झा "पिनाकी"

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रिपुदमन झा "पिनाकी"

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तर्पण

तर्पण

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पितृपक्ष में सब पितर, आते हैं भूलोक।

श्रद्धा तर्पण पाय के, लौटें वो निज लोक।।


कागा ढूंढें श्राद्ध में, भोग खिलाएं अन्न।

तृप्त होय आशीष दें, होवें पितर प्रसन्न।।


श्रद्धा से करते पिता, आज आपका श्राद्ध।

वरदहस्त हो आपका, क्षमा करें अपराध।।


करें श्राद्ध तर्पण पिता,जल तिल लेकर हाथ ।

सकल भाव अर्पण करूं, सदा झुकाऊं माथ ।।


पुत्र धर्म पालन करुं, करुं पिण्ड का दान।

तर्पण से पाएं पिता, स्वर्गलोक में स्थान।।


ऋण मुझ पर है आपका, मुझ पर है उपकार।

वचन, कर्म से श्राद्ध का, मेरा है अधिकार।।


आजीवन करता रहूं, पूरण अपने कर्म।

पिता मुझे आशीष दें, सदा निभाऊं धर्म।।



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