तर्पण व पिंडदान पितृपक्ष का
तर्पण व पिंडदान पितृपक्ष का
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पितृपक्ष का यह पिंडदान होता महादान,
अपने पूर्वज़ों को देते हैं लोग मान सम्मान !
चाहे कितने ही भेदभाव हों किसी के मन,
विस्मृत करो सब और पितृपक्ष में दो तर्पण !
जाति, धर्म, सम्प्रदाय से बढ़कर है,
पूर्वजों के निहित जो मोक्ष व तर्पण है !
जन्म जन्मान्तर से परे होता है सदा,
ये जो रिश्तों का अटूट अनोखा बंधन है !
जीवों के कृश करुण विह्वल क्रंदन में,
कर्तव्य, अधिकार व दायित्व निभाते हैं !
जो चले गए इस नाशक नश्वर दुनिया से,
उन पर अपरिमित स्नेह अवश्य लुटाते हैं !