तरंग
तरंग
ये एकतरफ़ा संवाद
सुखा देते हैं मुझे
कर देते हैं गला जाम
रुंध जाती हूँ
आँँसू और अपमान से।
कुछ वक़्त ठहरकर
हर-हराकर... बिखरकर
होती हूँ नीरव
तब मेरी आत्मा कहती है
शब्द सत्य है...।
क्या हर शब्द
खोखले हैं ?
शब्द भी,शब्दों से परे
एक तरंग जो झूठ नहीं कहती
सत्य वही है।
तब मान लेती हूँ
एहसासों को ही सत्य
जो चीख चीख कर
तेरे होने की गवाही देते हैं ।
उम्मीद यही है
यही वह रौशनी है
जिस पर ज़िन्दा है प्यार मेरा
यही है जो मुझे जोड़ती तुझसे
निःशब्द...।
कितने आविष्कार इन्ही तरंगो पर हुए
डिजिटल वर्ल्ड ज़िन्दा है
ज़िन्दा हैं गैजेट,
रेडियो,
टेलीविजन
उपग्रहों का खेल
रडार...औ अनेकानेक
और मैं भी।