तरबूज और चाकू
तरबूज और चाकू
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तरबूजे को डर है,
वो कहीं चाकू से कट न जाये
चाकू को डर है,
कहीं तरबूजे का लहू लग न जाये
दोनों को डर है, कहीं
एक दूजे के ज़ख्म लग न जाये
पर ऐसा होता नहीं है,
चाकू कभी रोता नहीं है
कटता हमेशा तरबूज ही है
इल्ज़ाम लगता चाकू पर ही है
सबको डर है,
कही चाकू, काजू हो न जाये
तरबूजे को डर है,
वो कही लाल से सफेद हो न जाये