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Krishna Bansal

Others

4.5  

Krishna Bansal

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तराना

तराना

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उम्र भर उलझे रहते हैं 

हम सभी, 

शब्दों की 

दुनिया में, 

शब्दों का अर्थ

निकालते हैं, 

कभी सत्य के आधार पर, 

कभी स्वार्थ के आधार पर, 

मन मुताबिक,

जोड़-तोड़ कर।


शब्दों के कारण 

गलतफहमियां होती हैं

लड़ाई झगड़े 

यहाँ तक कि 

महाभारत तक हो जाते हैं।


जब से तराना 

सीखना शुरू किया,

यह जाना, 

अर्थहीन शब्दों की भी 

अपनी एक दुनिया है, 

उनमें अगर सुर-ताल का 

संतुलन बना दें

यह दुनिया और भी 

खूबसूरत बन जाती है।


ये अर्थहीन शब्द 

न दिर दिर 

तुम दिर दिर  

दारे दानी दीम

लोम तोम तदियानी

और भी सैंकड़ों ऐसे ही 

अर्थहीन शब्द

इनकी संगीतमय ध्वनि 

अंतर्मन को छू लेती है

ध्यानावस्था में 

पहुंचाने के लिए काफी है।


जो मीरा गाएगी 

कबीर गाएगा 

उसमें हम अर्थ ढूंढेंगे 

उसमें सार्थकता ढूंढेंगे 

इन अर्थहीन शब्दों में 

न कोई अर्थ है  

न सार्थकता

फिर भी इनका अपना आनंद है।


सोचती हूं 

क्यों मानव इन अर्थहीन शब्दों का आनंद नहीं ले सकता।



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