तपती धरा
तपती धरा

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बादल जब झुका धरती को चूमने
देखते विवश किया सबको झूमने।
छलक उठता प्यार मिलन का है ये पल
अश्रु कण मोती झरे मन को सींचने।
प्यास धरा की जब गई देखी नहीं
हवा नभ में लगी बादल को खींचने।
बूँदे अमृत बरसती तपती धरा
पुलकित हो निरखे स्वयं को भीगने।
घेरती सावन घटाएँ उमड़ घुमड़
विरहिणी दृग तरसे प्रिय को खोजने।