Manoj Sharma
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जाम हो जाऊँ,
शराब हो जाऊँ
के गिलास हो जाऊँ,
बिन पीये झूमता फिरूँ
गर साक़ी के खास हो जाऊँ।।
तुम अपनी कहो
मृत्युदंड
कब तक?
श्रृंगार
जद्दोजहद
कमी
वक्त
हौंसला
गाँव
दादी