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Ramashankar Yadav

Others

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Ramashankar Yadav

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तलाश अमन की

तलाश अमन की

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इश्तहार दो अखबार में या ढूंढो गली बाजार में

यकीं है हमें कि ना मिलेगा वो इस सारे संसार में।

इश्तहार दो अखबार में ।।


मिलेगा भी कैसे बिचारा' हमीं लोगों ने तो उसे मारा

न दी जगह उसे समाज में किसी कोढ़ी की तरह दुत्कारा

जैसे पतझड़ हो वो, हमारी खुशायों की बहार में ।

इश्तहार दो अखबार में ।।


किसी भले मानस ने सुना और दी शहादत

अरे भाई पूरा नाम तो बताओ शायद हम कर सकेंं कुछ मदद

अमन नाम है किसी पालतू जानवर का या आपके बच्चे का

जो चला गया है करके घर वालों से बगावत।

पर फिर भी है शर्त ' पहले ये बताओ वो हिन्दु है या मुसलमान इस मजहब के बाजार में।

इश्तहार दो अखबार में ।।


कहाँ रहेगा अमन बिचारा, जहाँ भाईचारे से बड़ा है मजहब

भला क्युँ रहे वो वहाँ,' जहाँ पहले आए मजहब बाद में रब।

भूल गए हैं हम , अमन नाम है किस पंछी का इस नफरत की बयार में।

इश्तहार दो अखबार में ।।


धर्म की जो दिवार उठाई है हमने, एक दिन दब जाँएँगे उसी मलबे में हम

रक्त की बदबू उठेगी इस कदर, जिसमें घूट जाएगा हम सबका दम।

कुदरत ने तो बस इंसान बनाए थे, फिर किसने दी हमें मजहब की तलवार उपहार में।

इश्तहार दो अखबार में ।।


आओ लें मिल कर शपथ , अमन को हम सब लाएँगे

हिन्दु नहीं मुस्लिम नहीं, हम हमवतन कहलाएँगे

सारी दिवारें तोड़ कर खेलेंगे हम बहार मे।

इश्तहार दो अखबार में ।।



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