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Vivek Netan

Others

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Vivek Netan

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तकलीफ होती है ज़िंदा जल जाने से

तकलीफ होती है ज़िंदा जल जाने से

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हूँ मैं कैद पिंजरे में ना जाने किस जमाने से 

कुछ हासिल हुआ नहीं पंख फड़फड़ाने से, 

मजहब, तालीम, रिश्ते सब कहने की बात है 

पत्थरो को कब फर्क पड़ा है किसी के समझाने से। 


दिल तो करता है खूब कोसूं अपनी माँ को 

जिसने घर घर मिठाईया बांटी थी मेरे आने से, 

ना समझ थी बो पता नहीं क्या का क्या समझी 

पालतू हो या जंगली भेड़िये रुके हैं बोटी खाने से?


पापा और दादा बहुत जोर देते थे पढ़ाई पर, 

हौसला दिया ना रोका,स्कूल कालेज जाने से, 

थी बिलकुल में किसी की माँ बहन की तरह 

फिर हर शख्स क्यों छूता था मुझे बहाने से ।


बनके निडर खुद निकली थी नई डगर पर 

लगा कौन रोकेगा मुझे आसमान छू जाने से, 

घेर के लूटा, रौंद दिया, रोंआ रोंआ मेरे जमीर का 

सच बहुत तकलीफ होती है ज़िंदा जल जाने से। 


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