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Sujata Kale

Others

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Sujata Kale

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तिरंगा ! तू फिरा दे चक्र अशोक

तिरंगा ! तू फिरा दे चक्र अशोक

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हे तिरंगा ! तू फहराता

विशाल नभ पर कायम है ।


आन-बान और शान में तेरी 

हर भारतवासी नतमस्तक है।


तेरे अंदर शांति का प्रतीक 

फिर क्यों हिंसा की हलचल है?


कुसुंबी रक्त सबकी धमनी में 

फिर क्यों धर्माधर्म का भेदाभेद है?


हरित धरती से अन्न उपजता 

फिर क्यों केसरिया- हरा भेद है?


तू लहराता आसमान में 

तेरी नज़र सब ओर बिछी है ।


सीमाओं को बाँटता मानव

सीमा के अन्दर अंधेर मची है ।


गरीबों से लिपटी है गरीबी

सस्ती हुई बेकारी क्यों है?


ठेर ठेर चलता विवाद है

धर्म के नाम पर क्यों धूम मची है?


तू फिरा दे चक्र अशोक का

और मिटा दे अमनुष्यता ।


तुझ सा ऊँचा मानव बन जाए

सदा रहे वह अचल अभेद सा।


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