STORYMIRROR

Surendra kumar singh

Others

4  

Surendra kumar singh

Others

थी तलाश जिसकी

थी तलाश जिसकी

1 min
289

थी तलाश जिसकी मुझको

वो राग बज रहा है

नहीं दिख रहा है फिर भी

वो साज बज रहा है


भटक रहा था यहाँ वहाँ

अब मिलन हो रहा है

आंखों में जो डूब गया था

साथ चल रहा है


कैसे कह दें उम्मीदों का

शहर नहीं है कोई

उम्मीदों में डूब डूबा

शहर बस रहा है


सरक रहे हैं साथ समय के

जाने कितने रंग ,छलावे

जीवन पर ही नवजीवन का 

रंग पड़ रहा है।


कल जो था,वो कल अब

फिर लौट नहीं पायेगा

जाने कब से , कल का

अनुपम रूप बन रहा है।


Rate this content
Log in