थी तलाश जिसकी
थी तलाश जिसकी
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थी तलाश जिसकी मुझको
वो राग बज रहा है
नहीं दिख रहा है फिर भी
वो साज बज रहा है
भटक रहा था यहाँ वहाँ
अब मिलन हो रहा है
आंखों में जो डूब गया था
साथ चल रहा है
कैसे कह दें उम्मीदों का
शहर नहीं है कोई
उम्मीदों में डूब डूबा
शहर बस रहा है
सरक रहे हैं साथ समय के
जाने कितने रंग ,छलावे
जीवन पर ही नवजीवन का
रंग पड़ रहा है।
कल जो था,वो कल अब
फिर लौट नहीं पायेगा
जाने कब से , कल का
अनुपम रूप बन रहा है।
