था कभी
था कभी
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था कभी
विचलित हृदय
क्या स्वप्न
सच हो पायेंगें
था कभी,
भय से भरा
क्या व्यर्थ
ही मर जायेंगे
था कभी ,
अवसाद
नाहक दिन
गुजरते जा रहे
था कभी ,
विषाद
अवसर नही
क्यों आ रहे
था कभी
अंबार धन का
लगाने का जूनून
था कभी
होकर स्वयंभू
पूजन लेने में सुकूँन
था कभी,
विलासिता में
डूब जाने का प्रमाद
था कभी,
अपूर्ण ही
रह जाने का विषाद
फिर सहसा
एक दिन
तिलिस्म ये
खण्डित हुआ
सफलता की
शीर्ष पर
वो व्यक्ति
रंक्तरंजित हुआ
तब लगा
मारीचिका ये
व्यर्थ ही दौड़ायेगी
लुभावनी तो है
कभी भी
हाथ में ना आयेगी!