स्वतंत्र सैनानी
स्वतंत्र सैनानी
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न देखा मंज़िल ए मक़्सूद और भीड़ गए फरंगियो से
वो थे मुजाहिदीन ए आज़ादी जो लड़ गए फरंगियो से
भारत माता का था सवाल जो खून भी न रहा अज़ीज़
ज़ुल्म सह कर भी, आज़ादी को अड़ गए फरंगियो से
न झुके थे वो कभी, न झुकने दिया सर भारत मां का
सर कटा कर एक के बाद एक , लड़ गए फरंगियो से
यकीनन 'हसन' उनके सीनों में इश्क़ ए वतन था
जो जान की परवाह किए बिना अड़ गए फरंगियो से
तोड़ दी गुलामी की जंजीरें निछावर कर अपना लहू
बग़ैर तीर ओ तलवार जो भीड़ गए फरंगियो से.
मुजाहिदीन ए आज़ादी ( स्वतंत्र सैनानी )