सुयोग - सचेतन
सुयोग - सचेतन

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चेतन ही जगत का कारण,
धरा ही पूरे जाग का आधार।
गर हो एकांकी,
केवल एक शक्ति मात्र।
दोनों हो जाए पूरक परस्पर
हँसती खिल-खिलाती
सृष्टि ,
बनती जीवन-तत्व से भरपूर।
तब, धरा न केवल धरा,
वह तो कहलाती वसुंधरा।
तब, चेतन न केवल चेतन,
वह कहलाए सुयोग सचेतन।