सूरज है विश्वास
सूरज है विश्वास
लो मित्र !
छंट गई धुंध भी
बादल भी बरस कर
निढाल हो गए।
तुमने दिया था मौन का उपहार
प्रीत का नजराना समझ
रख लिया तप घर ने,
तुमने न जाने कितनी-कितनी शर्ते रखी
उस ऊर्जा पुंज ने वक्त का तकाजा
और नेह का अनुराग समझ मान ली
तुमने बाँटा उसे
अपनी जरूरत से
मशरूफियत और फुरसत के लम्हों में
उसने ये भी स्वीकार लिए
बिना किसी सवाल जवाब के
तुमने भरोसे को तोलना चाहा
तब मन रो उठा उजियारे का
सूरज पर शक किया तुमने
लो! मैं फिर आ गया
पूरे औज के साथ
देखो अब तुम्हारे मायने
उसकी रोशनी के दर्पण में।
सूरज
आखिर कब तक रह सकता है
अंधेरे की गिरफ्त में मित्र
उसे तो खुद का होना
रोज साबित जो करना पड़ता है
विश्वास का पर्याय है
तुम्हारा सूरज
फिर तुमने कैसे अविश्वास किया
उस पर मित्र
तुम तो हर कला में
संगी थे ना उसके।
