सुनहरे पंख
सुनहरे पंख
पिंजरों से निकल कर पंछी जब आजाद हुए,
सुनहरे अक्षरों में अपनी तक़दीर लिखने को बेताब हुए...
छूने को आसमान हम इस क़दर
पंख फड़फड़ायेंग़े राहों की हर बाधा
से लड़ जायेंगे,
आसमान में अपने घरौंदे बना आयेंगे,
नये इतिहास की नयी इबारत लिख जाएँगे
किसी के जीने का मक़सद बन जायेंगे।
अभी तो पंख फड़फड़ाये हैं थोड़ा इतराए हैं
खिलखिला रहा है बचपन, मुस्कराता बचपन
बचपन मीठा बचपन, सरल बचपन, सच्चा बचपन
वो गर्मियों की छुट्टियाँ
बच्चों के चेहरों पर खिलती फुलझड़ियाँ
घरों के आंगन में लौट आयी है रौनक़
सूने पड़े गली - मोहल्ले भी चहकने लगे हैं
बूढे दादा-दादी भी खिड़कियों से झाँक-झाँक कर देखने लगे हैं,
सुस्त पड़े चेहरे भी खिल गये हैं
मन ही मन मुस्काते हैं,
पर बड़प्पन का रौब दिखाते हैं
आइसक्रीम और क़ुल्फ़ियों की होड़ लगी हैं
ठंडाई भी ख़ूब उछल रही हैं
पानी-पूरी भी ख़ूब डुबकी लगा रही हैं
पिज़्ज़ा, बरगर, पास्ता भी सबको लुभा रहे हैं
चिंटू, चिंकी, सिद्धु, निकी भी सब मस्त हैं
सपनों को सच करने को
बड़े बुज़र्गों से ख़ूब दुआएँ कमा रहे हैं
