सत्यभामा का अहंकार ध्वस्त
सत्यभामा का अहंकार ध्वस्त


जब भगवान कृष्ण सत्यभामा के लिए पारिजात का वृक्ष ले आए तब सत्यभामा को अहंकार हो गया। की द्वारिकाधीश सबसे ज्यादा सत्यभामा से प्रेम करते है। सत्यभामा सारी रानियों से ईर्ष्या करती थी। यह बात मुरलीधर जानते थे। तब कृष्ण व देवऋषि नारद ने एक योजना बनाई। सत्यभामा को कोई व्रत करना था। तब उस व्रत की सारी विद्याएं देवऋषि नारद ने पूर्ण करी। अंत मे
सत्यभामा : बोलिए देवऋषि ! आपको क्या चाहिए ? धन -दौलत , सोना-चांदी , वस्त्र-आभूषण , क्या चाहिए आपको ?
नारद : नारायण -नारायण ! देवी ! आपने जिन चीज़ों का वर्णन करा है , उनमे से मुझे कुछ नही चाहिए।
सत्यभामा : यदि आपको इनमें से कुछ नही चाहिए तो आपको क्या चाहिए ?
नारद : नारायण -नारायण ! देवी ! जो मैं मांगूंगा क्या आप मुझे दे पाएंगी ?
सत्यभामा ( हस्ते हुए ) : ऐसा क्या है जो मैं न दे पाऊ ?
नारद : नारायण - नारायण ! आप पहले मुझे वचन दीजिये की मैं जो भी मांगूंगा , आप उसे सहर्ष दे देंगी।
सत्यभामा ( अहंकार भरे स्वर में ) : वचन की कोई आवश्यकता तो नही थी , पर आपके सन्तोष के लिए मैं आपको वचन देती हूं की आप जो भी मांगोगे , वह मैं आपको अवश्य दूंगी।
नारद : नारायण - नारायण ! ठिकहे देवी ! जब आपने वचन दे ही दिया है तो मैं भी मांग ही लेता हूं।
सत्यभामा : हा शीघ्र कहिए।
नारद : नारायण - नारायण ! तो देवी मुझे चाहिए आपके पति द्वारिकाधीश।
नारदजी की यह बात सुनकर हर कोई आश्चर्यचकित रह गया पर माधव तो मुस्कुरा रहे थे क्योंकि वह जानते थे कि यह जो हो रहा है , उन्ही की आज्ञा से हो रहा है। रुक्मिणी भी सब समझ गई। पर सत्यभामा तो अभी कुछ नही समझी थी। देवऋषि बार बार द्वारिकाधीश को मांगने लगे। सत्यभामा कुछ नही बोली फिर देवऋषि नारद जबरदस्ती कृष्ण को अपने साथ ले गए। तब सत्यभामा देवऋषि से प्रार्थना करने लगी तब देवऋषि बोले
देवऋषि : नारायण - नारायण ! देवी सत्यभामा ! आपकी इस विनती से मेरा मन पिंघल गया। मैं द्वारिकाधीश को मुक्त करूँगा पर मेरी एक शर्त है।
सत्यभामा : शर्त ! कैसी शर्त ?
देवऋषि : नारायण - नारायण ! शर्त यह है कि द्वारिकाधीश के बदले मुझे द्वारिकाधीश के वजन जितनी ही चीज़ चाहिए।
सत्यभामा को अपने ऐश्वर्य पर अहंकार था और उसने देवऋषि को वचन दिया कि देवऋषि जितना भी धन चाहे वह उन्हें देंगी। तब कृष्ण का तुलादान होने लगा पर कृष्ण का पगड़ा तो टस का मस भी नही हुआ। सत्यभामा के सारे आभूषण खत्म हो गए और उसका अहंकार भी खत्म हो गया। तब सत्यभामा ने रुक्मिणी से सहायता मांगी तब रुक्मिणी ने कहा कि कृष्ण तो एक पत्ते से भी तूल जाएंगे। तब रुक्मिणी ने एक पत्ता रखा और भगवान कृष्ण का पगड़ा हल्का हो गया।
इस प्रकार कृष्ण ने सत्यभामा का अहंकार तोड़ दिया।