स्त्री
स्त्री
स्त्री सृष्टि के निर्माण की आधारशिला है,
परिवार को समेटकर रखने वाली किला है।
स्त्री पुरुषत्व के भाव का आलंबन है,
वह है तो पुरूष का अहम है, स्वावलम्बन है।
स्त्री परमात्मा की सर्वोच्च और अनुपम कृति है,
वह इस धरती पर जीवन में प्रेम की स्मृति है।
स्त्री है तो जीवन में संगीत है, राग है, अभिराग है,
उसी से जीवन में सबके प्रेम है, अनुराग है।
स्त्री प्रेरणा है, शक्ति है, प्रोत्साहन है,
उसी से घर में प्रेम है, सौहार्द है, उत्साहन है।
स्त्री सम्पूर्ण है, समर्पण है, सुयोग्य है,
उसके बिना ब्रह्मांड भी अक्षम है, अपूर्ण है, अयोग्य है।
स्त्री क्रोध को पीने वाली प्रेम की परिणति है,
वह है तो जीवन में सौन्दर्य है अनुरति है।
स्त्री हर रिश्ते की उलझन को सुलझाने की चाबी है,
स्त्री माँ है, बहन है, बेटी है, पत्नी है और भाभी है।