स्त्री का प्रेम
स्त्री का प्रेम
स्त्रियों के भी कई रूप होते हैं ,
वो जब प्रेम की सीढ़ी चढ़ती है,तो बस उसी में खो जाती है
एक गीत हो जैसे गाते गाते वो खुशी खुशी सारे काम कर लेती है!!
स्त्रियों के भी कई रूप होते हैं
जब सच्चा प्रेम उन्हें किसी से होता है तब सादगी की चुनर ओढ़ के भी हँस लेती है,
बाल बिखरे हो तो भी खुद को खूबसूरत समझती है,
आईने में देख के खुद को इस नए रूप में ज़ोर से खिलखिलाती हुई घर मे ही नृत्य वो कर लेती है!!
स्त्रियों के भी कई रूप होते है
कोई कहता कुछ है वो सुनती कुछ है,अपनी ख्वाबो की दुनिया मे बुनती कुछ है,
एक चीख में वो दौड़ चला आये ऐसी कल्पनाएं वो मन ही मन करती है!!
स्त्रियों के भी कई रूप होते हैं
बेवफाई के रूप में ही उन्हें मत देखो, कुछ बेफवाई करती होगी माना,
मग़र जो वफ़ा करती है वो बड़ी ही सिद्दत से वफ़ा की चुनर गले मे डाल के हर जगह घुमा करती है!!
स्त्रियों के भी कई रूप होते हैं .............
