ससुराल
ससुराल
बेटी का स्थायी-आवास और घर ससुराल है,
कभी पुष्प, कभी शूलों की रहगुज़र ससुराल है।
प्रत्येक बेटी ससुराल की ही अमानत है,
माँ के घर में चन्द दिन बिखेरती चाहत है,
मायके के तरु पर बेटियाँ हैं पँछी की भाँति,
तारों की छाँव में सूनी कर जातीं तरु डाल है।
बेटी का स्थाई आवास और घर ससुराल है।
माँ का प्रतिविम्ब, पिता की परी होती है बेटी,
भाई की लाडली, भाभी की सखी होती है बेटी,
दो कुलों की लाज अपने अस्तित्व में समेटकर,
बनती सुख दुःख की सदा ही बेटी ढाल है।
बेटी का स्थाई आवास और घर ससुराल है।
बेटियों का सुखद गृहस्थ संसार होता है ससुराल,
ख़ुशियों का स्वप्निल उपहार होता है ससुराल,
जिसमें आकर मायके को विस्मृत कर देती है,
मोहपाश की मानिंद कोई जाल ससुराल है।
बेटी का स्थाई आवास और घर ससुराल है।
बेटी की दुनिया बदल जाती है विदाई के साथ,
कर नयन सजल जाती है विदाई के साथ,
ससुराल से मिलती हैं सुहाग की अमित निशानियां,
माँग का सिंदूर, होठों का रँग -ए-गुलाल ससुराल है।
बेटी का स्थाई आवास और घर ससुराल है।
