सरस्वती वन्दना
सरस्वती वन्दना
ज्ञान दायिनी मातु मै,
सुमिरौ द्वौ कर जोरि।
अज्ञान नाश करि कीजिए,
कृपा दृष्टि मम ओर।।
कृपा तुम्हारी चाहते,
देव असुर नर नाग।
आशिष मिल जाए जिसे,
सब सुख उसके भाग।।
मातु तुम्हारी दया दृष्टि से ,
मूर्ख ज्ञान है पाता।
वेद शास्त्र सब अंग तुम्हारे,
वीणा हाथ सुहाता।
नजर पडे तव जिस पर माता,
उर का तम मिट जाता ।
संसार तो क्या है देववृन्द भी,
तुमको शीश झुकाया ।
भाषा की उत्पत्ति कारिणी ,
दुख दारिद्र निभाता ।
छन्द प्रबन्ध ज्ञान अतुलित दे,
मुझे बनाओ ज्ञाता ।
ज्ञान और सद्बुद्धि देकर,
मेरा मार्ग प्रशस्त करो ।
मुझ पर दया करो मइया ,
मम कण्ठ पे आसन गृहण करो।।
