सरहद
सरहद
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"नहीं मेरा कोई भी धर्म - ईमान
मैं हूँ बस बेबस ,मजबूर बेजान,
देखे हैं कितने ! लाशों के अंबार
अपनों का दर्द और चीख पुकार,
दिल में लिए, बस यही अरमान
कोई तो सुनाए आकर के पैगाम,
कि हो चला है अब युध्द- विराम
क्या,कोई है,जो समझेगा ये दर्द?
पूछ्ती है सबसे, आज ये सरहद।
