स्मृति जन्मभूमि की
स्मृति जन्मभूमि की
अपरम्पार खुशी मिलती है ,और दिल गद्गगद हो जाता है।
यादें जिससे जुड़ी हुई हों,जब उस जगह पर कोई जाता है।
पहली बार जगह वह जिस पर, मैंने अपना पाॅ॑व छुआया था।
नवागंतुक के रूप में मैं , इस पावन-पुण्य धरा पर आया था।
नगर लखनऊ क्षेत्र अवध का, जहाॅ॑ जन्म तो मैंने पाया था।
जननी थीं निज मात-पिता संग,जब यह शुभ अवसर आया था।
अब नाना -नानी याद आ जाते हैं, जब लखनऊ ध्यान में आता है।
अपरम्पार खुशी मिलती है,और दिल गद्गगद...................
नारकोटिक्स में थे नानाजी ,तब लखनऊ में वे रहते थे।
माॅ॑ थी उनकी बहुत लाड़ली , एक ही साथ सब रहते थे।
मेरे आगमन के विचार से सब, बहुत प्रफुल्लित रहते थे।
खुशियॉ॑ बाॅ॑टीं थीं सबके संग मिलकर, होकर मग्न वे कहते थे।
स्मृतियॉ॑ जब ताजी होतीं, तब मन अति हर्षित हो जाता है।
अपरम्पार खुशी मिलती है,और दिल गद्गगद.................
तब नौवीं कक्षा में पढ़ता था मैं , जब लखनऊ हुआ जाना।
शादी में आमंत्रण था उस घर से, रहते थे जहॉ॑ नानी-नाना।
अरे !ये तो इतना बड़ा हो गया, तब हो पाया है इसका आना।
मैंने कहा तब ही आ पाया, जब था किस्मत में आब-ओ-दाना।
धागे तो हैं प्रभु के कर में,हरि इच्छा से है होता पत्ते का भी हिल पाना।
कोटि जतन करते हैं हम सब,पर होता वह जो प्रभु को भाता है।
अपरम्पार खुशी मिलती है ,और दिल गद्गगद........................
हम सबके पहुॅ॑चने पर सबने ही, खुशियॉ॑ बहुत मनाई थीं।
शादी और बीतीं स्मृतियाॅ॑, वहॉ॑ चार - चॉ॑द बन छाईं थीं।
शादी होकर बीता हफ्ता तब वापसी की आज्ञा मिल पाई थी।
आया इतना आनंद मुझे तो , नहीं याद गाॅ॑व की गई थी।
वह बचपन और लखनऊ की यादें, फिर वापसी का मन हो आता है।
अपरम्पार खुशी मिलती है,और दिल गद्गगद........................
अब तो नहीं हैं नानी-नाना, और साथी भी उनके अब नहीं रहे।
प्रेम भाव का वह वृक्ष हरा है,अब भी पुष्य पल्लवित हरित रहे।
सुख-दुख के अवसर मिल-जुल बाॅ॑टते,प्रभु परंपरा ये बनी रहे।
जन्मभूमि पर आने-जाने का क्रम तो, सतत् रहे प्रभु सतत् रहे।
अनुकम्पा यह कर दो दाता,यह याचक निज शीश झुकाता है।
अपरम्पार खुशी मिलती है,और दिल गद्गगद...................
