स्कूल के वो दिन
स्कूल के वो दिन
बड़ी उमंग से गया था, उस शिक्षा दरबार में
कुछ सुनसान था मगर, कुछ भीड़ थी घर बार में
प्रार्थना का वक्त जो हुआ , लगे हम सब कतार में
पुरी हुई प्रार्थना और जीके, पढ़ रहा अखबार में
मंच पर गुरूवर खडे़ थे, नाम था सुल्तान जी सर
कमी रह गयी पता नहीं हो, रहा पसीने से तर- बतर
आगाज था दिल में, बस आँखों में थोड़ी फटकार
सभांला था उस वक्त, उन्होने रूठ गया था जब संसार
कक्षा में हम जा पहुँचे, आ गये रामलाल जी सर
हिन्दी क्या बयां करे, जब वो खुद है साहित्यसागर
डर इतना था कहीं, अधिक गृहकार्य न हो जाये सर
गलतियों पर लाल घेरा, बस कहते इसे तू दोबारा कर
आ गये राजनीति विज्ञान के, नाम किशन जी सर
आवाज़ थोड़ी मदीं थी, और मदं-मदं हिले अधर
परिभाषा बताई है राजनीति की, न छोड़ी कोई कसर
ऐनक था आँखों पर शायद, कमजोर है थोड़ी नजर
अब हम पढे़ंगे भुगोल, आ गये ओमप्रकाश जी सर
तरीका थोड़ा था लाजमी , न जायेंगे कक्षा से बाहर
न थी उम्र अधिक उनकी, बस घूमते थे इधर - ऊधर
वॉलिवॉल खेलते थे, मैदान में न रहेगी अब कसर
अंग्रेजी के बादशाह थे, नाम था शिवभगवान जी सर
वाचन का वो लहजा था, रहती थी आशा दिन भर
वो मदमस्त चाल थी, साथ में वो चलने का था हूनर
शरमा जाये काबिलियत तब, जब सामने हो वो अगर
हिन्दी के वो शहशांह है, नाम है तिलोक जी सर
आवाज़ में अब रोब है, थे ज्ञान के अथाह सागर
तीन लोक के हो गये दृश, समझो देख ली सुरत अगर
जब खुद नहीं है वो तो , क्या सिमित रखेगा जिगर
भीगने का मजा आयेगा, अब सामने है वो मंजर
हरा हो गया वो हर दिल, जो पड़ा रहता था बंजर
दिल के आर पार है, ज्ञान का वो रक्तरंजीत खजंर
याद रहें नाम तिलोक जी का ,चाहे पड़ा रहे मेरा पजंर
शारीरिक शिक्षक वो, नाम है विजयकांत जी सर
हॉकी उनकी पगड़ी है, वो है इसके सिंह सरदार
हॉकी के लिये छोड़ दिया है, उन्होने खुद को हर बार
याद तो आते है जब निकलें, नाम हॉकी का ले हर बार
है विज्ञान की वो पाठशाला , भागीरथ जी नाम है
सिवाय विज्ञान उनके, वो विज्ञान सिर्फ नाम है
कहाँ आज़ाद है वो, जब विज्ञान ही उनका काम है
खोल देंगे हर वो अगर, विज्ञान मे दिमाग कोई जाम है
वो मनोज जी सर, है मोहर वकालत की
उठतें है सवाल जब हो, बात नजाक़त की
डर लगता है थोड़ा बस न सीमा ताकत की
ग़लती क्या चीज है , लंका लगा दे वो आफत की
गणित के आकार है, वो रामकुमार जी सर
सुत्रों के साकार है, रहे ना विद्यार्थी को कोई डर
गणित को मान लें कोण, तो प्रकार है रामकुमार जी सर
सुत्र ही नहीं सुत्राधार है रामकुमार जी सर
किसी वक्त ये थे मेरे, स्कूल के विषय शिक्षक
बनकर रहना चाहा है मैनें, हर पल इनका भिक्षक
छूट गया है साथ अब, रह गयी बस दिल में कसक
टूट गयी ये ढाल जो थी हर तूफां की रक्षक
ग़लती हो तो क्षमा करे, हे ! मेरे गुरूवर
मैं तो बस एक बूँद, आप ही है नीला सागर
अधें को जग दिखाकर, गुगें को बोलना सिखाकर
बना दिया है आत्मा की तरह अजर और अमर
आगाज से अंजाम तक, आपके कदमों में बयां है कलम
झुकने दूँगा न झुकने आपका सिर, हो चाहे मेरा सिर कलम
आपने ही तो सिखाया है आवाज़ उठाना ,और उठाना कलम
न झुकूँगा कभी मैं शांत रहकर, झुक कर चाहे सिर हो कलम
