"स्कूल का खाना, यादों का खजाना"
"स्कूल का खाना, यादों का खजाना"
मुझे फिर स्कूल जाकर नाश्ता करना है,
मुझे फिर मां की हाथ का खाना खाना है।
रहता लंच में हमारे गेहूँ की रोटी और अचार,
जिस में स्वाद के साथ होता था मां का प्यार।
सब दोस्त साथ में मिलाकर खाते थे,
खाने के बाद सब साथ में खेलते थे।
रिसेस की घंटी पर ही कान लगे रहते थे,
घंटी बजते ही सब साथ में खाने बैठते थे।
पढ़ने से ज्यादा नास्ते की फिक्र होती थी,
अगले दिन ही सबकी लिस्ट तैयार होती थी।
कल जो हकीकत थी, आज वो सपना बन गया,
स्कूल का खाना जैसे यादों का खजाना बन गया।