सिसकियां उसकी
सिसकियां उसकी
सिसकियां कुछ कह रही थी उसकी,
जानें क्यों चुप-सी रो रही थी,
सबकी नजरों से छुप रही थी,
आँखें बार-बार मींच रही थी ।
मुझे कहा था एक बार,
बड़ी मुझे हो जाने दो,
फिर देखना कैसे मैं,
करूँगी सबका विकास ।
छोटी-सी है बड़ी भोली-सी है,
पर, सयानी जैसी बातें उसकी,
शब्दों को भी खूब समझती,
बड़ों का है सम्मान वो करती ।
जानें क्यों वो दूर खड़ी थी,
छुप-छुप कर सबको देख रही थी,
मैं था थोड़ी जल्दी में,
बात रह गई ज़ेहन में ।
पल-पल उसकी याद आ रही,
मानों हृदय रूदन से मुझे पुकार रही,
घर जाकर मैं पूछूँगा,
प्यार से गले लगाऊँगा ।
