सीता की अग्निपरीक्षा कब तक
सीता की अग्निपरीक्षा कब तक
दोस्ती के पाक रिश्ते का
कब यूँ कारवां चला
कुछ कदम हम तुम साथ चले
और सफर मुकम्मल हो गया।
जब से तू मुझे मिला
जिन्दगी फजा बन गयी
बहुत हुए शिकवे गिले
अब साथ निभाना है तेरा।
चांद सितारे रौशन हैं
आसमान में है आज भी
पर जब से तू मेरा हो गया
तमन्ना न दूजी रही कुछ और पाने की।
ये जुस्तजू और जिद थी हमारी
तेरा साथ जब हमें मिला,
फूलों का आशियां बसायेगें
उस दिन सारी कायनात मिलकर जश्न मनाएगें।
संगिनी रुप में सीता जो बनी तेरी
तुम राम बन वनवास तो न ले जाओगे?
आखिर सीता की अग्निपरीक्षा कब तक
रावण की खातिर ये संसार वाले लेते जाओगे?
अब तो वक़्त है बदला
न देंगी हम स्त्री, कोई अग्निपरीक्षा
अपने स्वाभीमान के वास्ते ,
जो इज्जत हमें न मिली तो रह जायेंगे अकेले हँसते-हँसते।
ये ज़ालिम ज़माना क्या जाने
एक पाक औरत की इज्ज़त को
जिसको चोट है लगे
उसका दर्द सिर्फ वो पहचाने।
टूट बिखर रह जाती है
अपनी तकलीफ कभी किसी से न जताती है,
कब तक रहेगी सिसकती सम्मान पाने के लिए ,
अपने परिवार पर बलिदान तत्पर रहती चलने के लिए।
जब थामा ही है हाथ मेरा
मत लो कोई परीक्षा किसी दुनिया के लिए,
कोई नहीं समझेगा रिश्ता तेरा मेरा
नाम सुहाना हो चाहे, चाहे फिर स्वर्ग या नरक मिले।
