शून्य
शून्य
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रे मन यूँ हताश ना हुआ कर
गंगा तन्हाईयों की सुखाकर
कोण न्यून से इन्द्रधनुष बनाकर
परछाई लम्बी छोटे कद की देखाकर
रे मन यूँ हताश ना हुआ कर-2
टूटे आईने में अक्स देखाकर
जोड़ घटाओ की गणित सीखकर
गाथा सृष्टि सृजन की गायाकर
रे मन यूँ हताश ना हुआ कर-2
अनगिनत हैं तारे कुछ की टूट देखकर
रे मन यूँ हताश ना हुआ कर
क्यूँ गिनता टूटे पंख तू
उड़ते पंछी का सफ़र देखाकर
रे मन यूँ हताश ना हुआ कर-2
जिन्हें जल्दी थी वो चले गये
तू कहाँ? और मैं कहाँ?
डूबती कश्ती ढलता सूरज
रे मन यूँ हताश ना हुआ कर-2