शुक्राने में
शुक्राने में
दौर बदलते हैं
माहौल बदलते हैं
बदलते दौर, माहौल में
ज़िन्दगी के तरीके-तौर बदलते हैं।
बदलती ज़िन्दगी में फिर भी
तपता सूरज या ठंडा सूरज कभी-कभी
बढ़ता चांद या घटता चांद
बदलती है कुदरती नायाबी भी।
क़ुदरती नायाबी तन्हाई में भी भाए
इन्सान और पशु एक सा सकूं पाएं
पेड़-पौधे, सभी प्राणियों में जान फूंक
अपने साए में रख साथ निभाए।
मनभाते साथ में
मनभानी खुशहाल चाहतों में
दैवीय नियामतों को मानते हुए
मुंह उठाए शुक्राने में।
शुक्राने की तरंगों में बहते हुए
बहते-बहते भटकते हुए
भटकते हुए जु़ड़ने की कोशिश में
ऊंचे शिखर पर नज़र रखते हुए।
शिखर छूने की ललक में
सपने संजोती पलक में
सब चाहत बिसर जाए
दैविक शक्ति की झलक में।
