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Manju Rani

Others

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Manju Rani

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शत् शत् प्रणाम

शत् शत् प्रणाम

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जब अंकुर फूटा था,

तब माँ, बन के गुरू खड़ी थी मेरे सामने,

अँगुली पकड़ के चलना सीखाया पथरीली राह में,

पड़े थे छाले मेरे और उसके पाँव में,

पर दवा लगा रही थी वो मेरे पाँव में,

तब समझ न पाई थी गुरुत्व और, 

ममत्व को ,उस पहले गुरू को,

मेरा शत् शत् प्रणाम ।

फिर पिता ने पहचान करवाई,

इस दुनिया से,

जहाँ बडों को सम्मान देना था,

अपनी एक पहचान बनाने थी,

जिसके लिए बजाई घट्टियाँ,

विद्या के मंदिर में,

करवाया परिचय वहाँ गुरू से,

उस दूसरे गुरू को,

मेरा शत् शत् प्रणाम ।

विद्या के मंदिर में अनेक पुजारी मिले,

सब विभिन्न क्षेत्र में शिक्षा दे जाते थे,

तब अनके विवेक को न पहचान पाई,

पर आज़ उन्हें करती हूँ, 

मैं शत् शत् प्रणाम ।

उन्होंने राह के पत्थरों को फूल बना दिया,

मेरी मश्किल राह को आसान बना दिया,

मुझे पाँव पे खड़ा होना सीखा दिया,

मेरे जीवन को अमृत बना दिया,

उन गुरू जन को, 

मेरा शत् शत् प्रणाम ।

जिन्होंने मुझे गुरू का अर्थ समझा दिया,

उन्हे शत् शत् कोटी प्रणाम ।



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