शर्मा जी का लालच।
शर्मा जी का लालच।
शर्मा जी ने पढ़े समाचार,
पढ़कर उनको आया बुखार।
एक घोटाला बड़ा निराला,
शर्मा जी का निकला दिवाला।
दिन में तारे नजर आये उनको,
लालच का फल मिला था जिनको।
शर्मा जी अब सोच रहे थे,
उस दिन को कोस रहे थे।
देख कर सपने सुनहरे हजार,
शर्मा जी निकले बीच बाजार।
पढ़ कर चिटफंड का विज्ञापन,
लालच की कीचड़ में फिसल गया मन।
अवचेतन ने मन को चेताया,
लालच का परिणाम समझाया।
कर अनसुनी मन की बात,
चल पड़े वह आधी रात।
परिजनों से लिया उधार,
जिन्होंने समझाया हजार बार।
दुगने धन का लालच ऐसा,
हर ओर दिख रहा था पैसा।
लेकिन कुछ ऐसा था हाल,
सुन शर्मा जी हुए बेहाल।
जिस कम्पनी में पैसा लगाया,
उसने सबको ठेंगा दिखलाया।
जाने बर्बाद हुए कितने घर बार,
लेकिन कम्पनी हुई फरार।
अब शर्मा जी सोच रहे है,
अपना माथा फोड़ रहे है।
याद करते है कहावत हर बार,
कि आ बैल अब मुझे मार।
