श्री राम
श्री राम
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त्याग किया था जीवन भर,
निभाया धर्म, न सुख चैन पाया ।
ना लोभ, मोह, लालसा,
न काम, क्रोध, मद,माया ।
तेरी मर्यादा, धेर्य की सीमा ,
क्या मापे ये ध्वनि रघुवीर ।
निकले द्वापर, सत, त्रेतायुग ,
तब तुमने मंदिर जो बनाया ।।
अयोध्या में बीते कितने युग ,
अब तुमने मंदिर जो बनाया ।
चाहे कोई देव, गन्धर्व हो या,
कोई जीव या प्राणी,
युगों युगों तक रहेगा वो,
प्रभु श्री राम का ऋणी ।