श्राद्ध और तर्पण
श्राद्ध और तर्पण
चले गए जो दुनिया से
करते हम उनका श्राद्ध और तर्पण
जो जीवित है और साथ है
करते न उनका पोषण भरण।
हे मानव, तुम आधुनिकीकरण के
किस दौर मे रख रहे हो कदम
नित दिन करते उनका अपमान
भेज रहे उन्हे वृद्धाश्रम
कान जिनके तरसते हैं।
सुनने को मीठे दो बोल
पथराई आंखों से राह तकते
अपनो की आहट को तरसते
सांस सांस गिन रहे और मर रहे
ये जिन्दा लोग अपनो का
इंतजार कर रहे।
प्यार और अपनापन
अर्पण करो इन्हे तन मन से
तृप्त होगी इनकी आत्मा
आशीष देगें बहुत
इहलोक और परलोक से
पितृ पक्ष तुम्हारा भी सफल होगा
आने वाली पीढ़ी का जीवन सफल होगा।
