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Fahima Farooqui

Others

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Fahima Farooqui

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शिक़वा

शिक़वा

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अब क्या शिकवा करे तेरी कमी के लिए।

हमें तो अब फ़ुरसत नही हमी के लिए।


हज़ारों मिल का फ़ासला तय करना पड़ा,

या ख़ुदा बस दो गज ज़मी के लिए।


कुछ ख़्वाबों का टूटना भी लाज़मी था,

पथराई आंखों की नमी के लिए।


क़दम क़दम पर ख़्वाहिशों को दफ़न करता,

जीना आसान नहीं होता आदमी के लिए।


सिर्फ़ तुम्हारा ही ख़ून शामिल नही मिट्टी में,

सर हमने भी कटाए है सरज़मी के लिए।


कुछ तो कशिश है मोहब्बत में दोस्तों,

वरना आसमाँ झुकता नही ज़मीं के लिए।


जब से निकले हैं तेरी तलाश में,

हम तो लापता हो गए हमी के लिए।


ख़ुद अपने ही हाथों लूटा बैठे सुकून अपना,

किसको दे इल्ज़ाम नींद की कमी के लिए।


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