शिक्षक
शिक्षक
शिक्षक होता सूर्य के समतुल्य
हमेशा सब को राह दिखाता है।
नव समाज की होगी कैसे रचना
शिक्षक हमें यही सिखाता है।
जीवनोपयोगी नैतिक-शिक्षा से
मानवोचित गुण विकसित हो सकें।
विकास की मंजिलें पार करें
और सुख शान्ति समाज में हो सके।
आज अँधेरे में राष्ट्र-नव रचना,
की प्रकाश-किरण बना शिक्षक है।
आशा भरी दृष्टि से तकता राष्ट्र,
वही हित-चिंतक और रक्षक है।
अध्यापक करते चरित्र निर्माण
यह किसी के वश की बात नहीं।
अभिभावक, सामाजिक-राष्ट्रीय
नेतागण भी इसमें होते सफल नहीं।
अभिभावकों की आज्ञा पालन में
बच्चे मीन-मेख निकाल जाते हैं।
लेकिन शिक्षक की बातों पर वे सब सहजविश्वास कर जाते हैं।
देश-धर्म पर उत्सर्ग करने वाले
हमेशा अध्यापक ही होते हैं।
वे अंधकार युग में राष्ट्र-निर्माताओं को
प्रकाश दे दिया करते हैं।
शिक्षक न होगा सीमाओं में स्वतन्त्र तो
राष्ट्र-ढाँचा बिगड़ जाएगा।
स्वाधीनता के युग में दशा सुधारने हेतु
रास्ता कौन दिखाएगा।
यदि शिक्षक समाज के नवनिर्माण में
अपना समय लगाएगा।
तो आशा और नवचेतना से राष्ट्र का
पूरा ढाँचा ही सुधार जाएगा।
प्रतिबंधों और परिस्थितियों के होते भी
ईमानदार वह होता है।
कर्तव्यनिष्ठा व राष्ट्र निर्माण की जिज्ञासा से
ओत-प्रोत होता है।