शीर्षक:आहत
शीर्षक:आहत
एक आहट सी दी आईने ने आज…
आज खड़ी हुई आईने के सामने तो
वो पूछ बैठा मुझसे अचानक ही आईना
एक अनसुलझा सा सवाल
धीरे से आई अपने अंतर्मन आवाज़
क्षीण ही रही हैं तू भीतर से
प्रतिक्षण शून्य विलीन होने को
एक आहट सी दी आईने ने आज…
मधुर सा जीवन का स्वप्न यकायक ही
धूमिल सा नजर आने लगा और फिर
आईने ने दिखाया मुझे मेरा ही प्रतिबिम्ब
स्वर्णिम सी जीवन यात्रा अचानक ही
तृषित सी लगने लगी अपनी सभी उम्मीदें
एक अदृश्य सी आहत उठी और जैसे
एक आहट सी दी आईने ने आज…
हौले से बोल गई हो वापसी की बात
आईना आज पूछ बैठा मुझसे ये सवाल
आखिर कब तक होगी हमारी मुलाकात
उस पुराने ही हाल…?
आज अलौकिक और अपराजेय सी आवाज
लौट चलना होगा शाम ढल गई हैं अब यात्रा की
एक आहट सी दी आईने ने आज…
अब लौट चले ही ध्वनि मुझे आईने से दिखाई
एक प्यारा सा बंधन था उसके व मेरे मध्य
मेरा आईना आज मुझे मेरी ही मूरत दिखा बोला
मानो क्षितिज के पास जाने का इशारा था
एक अनुपमेय आहट दी उसने मुझे मानो
पुनः आमंत्रण हो आगमन का इस सृष्टि में