शौक ~ए ~तलब
शौक ~ए ~तलब
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मुझे पीने से अब लगता नहीं डर ,
ये मेरे शौक ~ए ~तलब की शान है ,
कभी मैं उनके पीने से थी खफा ,
आज ये ज़िस्म ~ए ~लहू की आन है |
बहुत जल - जलके इसका शौक चराया ,
कड़वे घूँटों से अपना ज़िस्म ज़लाया ,
अब जब बन बैठी इसकी महबूबा ,
फिर क्यूँ ढूँढूँ कोई यार मैं दूजा ?
अक्सर वो मुझे अब देते गाली ,
कहते बन गई मैं भी पीने वाली ,
गल जायेगा ये ज़िस्म एक दिन ,
और ढेर बन जलेगा किसी दिन |
गम कैसा ज़िस्म गलने का ?
आज मन है बस पीने और मचलने का ,
खाली दिल उसकी याद में जले ,
पीने पर बस वो ही वो दिखे |
पीना अब शौक से ज्यादा आदत बनी ,
हर घूँट में ये ज़िन्दगी अपनी लगी ,
आज मौत भी गर आके गले लगाये ,
बस दो घूँट इस हलक में दे समाये ||