शांति-भंग
शांति-भंग
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गुपचुप बातें करते रहते
चुपचुप रहे न कब
बात बढ़े बखेड़ा होवे तो
काहे रोवे अब?
इसकी बातें उसके कान
किसके घर का कौन मेहमान
इन सब मे भूल सब काम-धाम
खुद के घर से रहे अनजान।
जब जब किसकी बातें सुनकर
आस पडोस के सब जुट जावे
करते बुराई इसकी-उसकी
निज सुख में न मन भर पावे।
जो कोई ऊंची पद पर जावे
तब जो ईर्ष्या करे स्वभाव
वो ख़ुद ऊंचा पहुँच न पावे
सुख समृद्धि का रहे अभाव।
मन की शांति भंग न कर तू
सुख बीता अपना संसार....
जो पराई अशांति घर भर लावे
अपनों का सुख चैन छुड़ावे
उस घर में निश्चित होवे टकरार.....
जैसे रस्ते जाते बैल बुलाके...बोले आ अब हमको मार।
