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Nirupama Naik

Others

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Nirupama Naik

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शांति-भंग

शांति-भंग

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गुपचुप बातें करते रहते

चुपचुप रहे न कब

बात बढ़े बखेड़ा होवे तो

काहे रोवे अब?


इसकी बातें उसके कान

किसके घर का कौन मेहमान

इन सब मे भूल सब काम-धाम

खुद के घर से रहे अनजान।


जब जब किसकी बातें सुनकर

आस पडोस के सब जुट जावे

करते बुराई इसकी-उसकी

निज सुख में न मन भर पावे।


जो कोई ऊंची पद पर जावे

तब जो ईर्ष्या करे स्वभाव

वो ख़ुद ऊंचा पहुँच न पावे

सुख समृद्धि का रहे अभाव।


मन की शांति भंग न कर तू

सुख बीता अपना संसार....

जो पराई अशांति घर भर लावे

अपनों का सुख चैन छुड़ावे

उस घर में निश्चित होवे टकरार.....

जैसे रस्ते जाते बैल बुलाके...बोले आ अब हमको मार।



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