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शाम
शाम
Rekha Bora
Others
3
-
Originality :
3.0★
by 1 user
-
-
Language :
3.0★
by 1 user
-
Cover design :
3.0★
by 1 user
Rekha Bora
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शाम
शाम
वो
धुआँ- धुआँ
सी शाम
अँधेरे की फैलती
चादर
पक्षियों का
कोलाहल
खेतों से लौटते
बैलों के गले की
टुनटुनाती घंटियाँ
गाँव के उन कच्चे
घरों में फैली
धुंधली रोशनी
और दूर पहाड़ी पर
अंधकार में डूबा हुआ
पुराना मंदिर
ऐसा लगता है
शायद
सो गया है ईश्वर
उन बंद
कपाटो के परे
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