शाम सलोनी आई
शाम सलोनी आई

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काले-काले बादल झूमे
झूमे पुरवाई
शाम सलोनी आई
नन्ही बूंदें इठलाती आई
गिरी धरा पर जब ये
मानो सुन्दर स्वर लहरी हो गई
सुनकर पत्तों ने भी अपनी तान लगाई
फूलों ने चेहरे धोकर
गरमी दूर भगाई
रुई के फाहे से बादल
आसमान में खेले आँख मिचौली
नदिया की गागर छल-छल छलकी
हरियाली ने धरती को
चूनर धानी पहनाई
बरखा की बहती धारा में
मैंने नाव खूब चलाई
खुश हो होकर
भुट्टे और पकौड़ी ने
मेरी शाम सजाई
काले -काले बादल झूमे
झूमे पुरवाई
शाम सलोनी आई