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Kahkashan Danish

Others

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Kahkashan Danish

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शाम से बातें

शाम से बातें

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ऐ शाम ज़रा कुछ तो बोलो,

चुप काहे को रहती हो।

मैं तुमसे बातें करती हूं

तुम नदिया सी बहती हो।

मिलने को मजबूर हुए है,

ये कैसी लाचारी है?

लगता है मेरा ग़म तुम भी,

चुप हो कर ही सहती हो।।


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