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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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सबके राम

सबके राम

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अब जब रामजी अपने धाम आ रहे हैं

तब पता चला कि वो तो "सबके राम" हैं,

एक बात फिर भी बेचैन करती है

कुछ लोगों को आखिर उनसे दिक्कत क्या है?


राम जी से नफ़रत की वजह क्या है?

फिर मन में आया इसमें कुछ नया नहीं है।

कुछ को जिंदा मछली निगलने की आदत होती है।

तभी तो रामजी को जब काल्पनिक कहा गया

तब भी कुछ लोगों ने इसका समर्थन किया। 


कुछ मूढ़ कहते कि राम मांस खाता था

रामचरितमानस में भेद- अपमान करता है,

राम को मंदिर की ज़रूरत क्या है

ज़रूरत है तो अपना खुद मंदिर बनवा लेंगे।

और जाने क्या- क्या कहा जा रहा है,

राम मंदिर के स्थान पर स्कूल, अस्पताल

बनवाने का कुतार्किक बयान दिया जा रहा है।


मैं लगातार उलझता जा रहा था

फिर प्रभु राम का ध्यान कर 

उनसे अपनी पीड़ा का बखान किया।

तब राम जी ने मुझे समझाया

वत्स! तुम्हारी पीड़ा का कोई सार्थक तर्क नहीं है।


आज जो जैसे बयान दे रहे हैं

वे अपने पूर्व जन्मों के साये से निकले नहीं है

दोष उनका नहीं उनके कर्मों का है

जो उन्होंने अपने पूर्व जन्मों में किया है

जिसका भूत आज भी उनके सिर पर सवार है।


उन्हें अपने पूर्वजन्म और कर्म का ज्ञान नहीं है

आज भी उन पर अज्ञानता का पाप भार है।

त्रेता युग में जिसने राम को नहीं जाना

उसका हश्र क्या हुआ ये वो सब भी जानते हैं

फिर भी आज ठीक उन्हीं की तरह व्यवहार कर रहे हैं,

अपने विनाश की नींव खुद खोद रहे हैं। 


कुछ तो रावण से भी ज्यादा ज्ञानी, 

और दंभी होने का प्रमाण रच रहे हैं

राम "सबके राम" हैं यही सोचकर 

कुछ भी कहते, करते जा रहे हैं

पर उन्हें कौन समझाए राम केवल उनके हैं 

जिनके हिय पावन हैं।


त्रेता में असुरों के राम मुक्तिदाता थे

विभीषण सुग्रीव, जामवंत अधिष्ठाता थे,

हनुमान सुग्रीव अंगद अतुलित बल पाए थे  

शबरी, अहिल्या पर भक्ति भाव छाए थे,

असहायों, निर्बलों के राम थे धनुर्धारी

हार गए पापी जो कलुषित थे व्यभिचारी।


आज के युग में भी ठीक वैसा है प्यारे

जिसके राम हैं वे ही दुनिया में हैं न्यारे,

राम को नहीं मानते जो बोलते हैं कटु वाणी 

खुद को समझते राम बन्द जिनके ज्ञान नाड़ी 

कर्म जैसे हैं उनके मिलेंगे परिणाम सारे

मैं तो केवल यही समझूँ राम सन्मुख सभी हारे।


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